अगर विजय मंदिर और भारत के नए संसद भवन को ऊपर से देखा जाए, तो एक जैसे लगते हैं। विजय मंदिर का निर्माण मध्य प्रदेश के विदिशा में चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने करवाया था। लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला करके इसे तोड़ दिया था
मार्च 2021 में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया था कि नई इमारत तैयार है और पुराने भवन को किसी और इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। हालांकि, अब तक तय नहीं है कि यहां क्या होगा।
एक रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा था कि मौजूदा संसद भवन के एक हिस्से को संग्रहालय में भी तब्दील कर दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो यहां पहुंचने वाली जनता लोकसभा को अंदर से भी देख सकेगी।
क्यों है खास?
खास बात है कि नए फ्लोर प्लान के तहत लोकसभा में ज्वाइंट सेशन्स के लिए 1272 सीटें होंगी। इन दो विशाल कमरों के अलावा भवन के मध्य में एक संविधान कक्ष होगा। नई इमारत में दफ्तरों को बेहद आधुनिक ढंग से तैयार किया गया है, जो सुरक्षा और संचार के लिहाज से लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस होगा
बड़े कमेटी रूम और नई लाइब्रेरी भवन का हिस्सा होंगे। इसके अलावा संसद परिसर को ऊर्जा के मामले में किफायती होने के चलते ‘प्लेटिनम रेटेड बिल्डिंग’ कहा जा रहा है। खास बात है कि करीब दो सालों की कड़ी मेहनत के बाद तैयार हुए भवन में 60 हजार से ज्यादा कर्मियों की मेहनत शामिल है।
मंदिर परिसर में रहस्यमयी बावड़ी

विजय मंदिर के विशाल परिसर में एक बावड़ी भी मौजूद है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां का पानी कभी भी सूखता नहीं है। साथ ही इसकी गहराई और लंबाई को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो सकी है। एक धारणा यह भी है कि इस बावड़ी से एक रास्ता एमपी के ही एक और प्राचीन शहर रायसेन तक जाता है।
क्यों है नया भवन त्रिकोण?
971 करोड़ रुपये में बनी इस नई इमारत का त्रिकोणीय आकार भी चर्चा में है। सेंट्रल विस्टा की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि इमारत में मौजूद जगह का भरपूर इस्तेमाल करने के मकसद से इसका आकार त्रिकोण रखा गया है। नए भवन में राष्ट्रीय पक्षी मोर के आधार पर तैयार लोकसभा में सदस्यों के बैठने की संख्या भी बढ़ाकर 888 की गई है। जबकि, कमल के आधार पर तैयार राज्यसभा में 348 सदस्य बैट सकेंगे
यह भोपाल से 65 किमी दूर विदिशा का ऐतिहासिक विजय मंदिर है, जिसे औरंगजेब ने 1682 में तोपों से तुड़वा दिया था। अब मप्र सरकार यहां टूरिस्ट स्पॉट विकसित करेगी। सदियों से मलबे और मिट्टी के टीले में दबा मंदिर 1992 में आई बाढ़ में सामने आया था। स्थानीय इतिहासकार कैलाश देवरिया बताते हैं- 10वीं सदी में चालुक्य राजवंश के महामंत्री वाचस्पति ने प्रतिहारों पर विजय के प्रतीक के रूप में इसे बनवाया था। यह चालुक्यों की कुलदेवी
भिल्लस्वामिनी को समर्पित है। यहां कोणार्क की तर्ज पर सूर्य मंदिर भी था। अलबरूनी ने लिखा कि मंदिर 105 गज (315 फीट) ऊंचा था। देश की नई संसद भी इसके जैसी दिखती है।