लोकमान्य तिलक ने संघर्ष को जेल से जोड़कर जंगे आज़ादी को नये तेवर प्रदान किये।
स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है-उसको हम लेकर ही रहेंगे का पराधीन भारत में शंखनाद करने वाले ,अर्जी-एप्लीकेशन की कागज़ी मीनारें खड़ी करके अँग्रेजों के आगे अपना दुखड़ा रो रो के प्रकट करने वाली ठंडी आराम कुर्सियों और सुनहरी पगडण्डियों वाली राजनीति को किनारे करते हुए तत्कालीन काँग्रेस के गरम दल के नेता बालगंगाधर तिलक ही प्रथम जननायक थे। जिन्होंने संघर्ष को जेल के सींकचों से जोड़कर जंगे आजादी को नये तेवर प्रदान किए।माण्डलै जेल में एक बंदी के रूप में लिखा गया उनका अमर ग्रन्थ गीता रहस्य जन- मुक्ति का खुला घोषणा पत्र सिद्ध हुआ है। उन्होंने इस ग्रन्थ की भूमिका में लिखा – श्री श्री शायजनात्मने – अर्थात् इसे मैं जनता जनार्दन को समर्पित करता हूँ। तत्कालीन प्रख्यात विद्वान, जिन्होंने 40 साल तक संस्कृत में पारंगति हासिल की मैक्समूलर ने अँग्रेजों को कड़ी फटकार लगाई कि तिलक जैसे विद्वान को तुरंत जेल से रिहा करो।आम जनता को अँग्रेजों के विरुद्ध जुझारु संघर्ष का उन्होंने इंजन बना दिया था। 1908 में भारतीय जनमत के प्रबल विरोध के बाबजूद समाचार अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार करके अँग्रेजों ने 6 साल के कठोर कारावास की सजा दी ,जिसके विरोध में बम्बई की जनता ने लगातार 6 दिन तक हड़ताल जारी रखी, तब तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्राध्यक्ष लेनिन ने लिखा था, ” ब्रिटिश गीदड़ों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के जननायक तिलक को सुनायी कुख्यात सजा के खिलाफ न केवल बम्बई में अपितु विश्व की स्वतंत्र जनता में इतना जबरदस्त उबाल आ गया था कि उन्होंने सावधान किया कि भारत में अंग्रेजी शासन के दिन अब गिने-चुने ही रह गये।


