भारतीय क्रिकेट का नाम आज पूरे विश्व में मशहूर है। चाहे बात सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की हो या दुनिया की सबसे बड़ी लीग की भारतीय क्रिकेट हर पहलू में उच्चतम है। इन सभी उपलब्धियों का एक मुख्य कारण है बीसीसीआई (BCCI) की धाकड़ कमाई और उसका प्रबंधन। बीसीसीआई की वार्षिक आय ₹17,000 करोड़ से भी अधिक होती है, वही हर साल होने वाली इंडियन प्रीमियर लीग लगभग ₹2400 की कमाई करती हैं। परंतु इतना मुनाफा कमाने वाला बीसीसीआई एक ऐसा संगठन है जो सरकारी टैक्स से मुक्त है। कमाई चाहे कितनी भी हो पर बीसीसीआई को टैक्स के रूप में कुछ भी भार नही उठाना पड़ता।
इसके विपरीत, भारतीय सामान्य नागरिक को हर साल अपनी कमाई पर टैक्स भरना पड़ता है। एक व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय ₹7 लाख है, उसको हर साल 10% का टैक्स देना पड़ता है। यानी, वह लगभग ₹70,000 टैक्स के रूप में सरकार को देता है। वही दूसरी ओर बीसीसीआई जैसे संगठन के लिए तरह से मुफ्त टैक्स की व्यवस्था होती है। इसका अर्थ यह है कि ₹17,000 करोड़ की आय बीसीसीआई द्वारा बिना किसी जवाबदेही के या टैक्स के वितरीत की जाती हैं।
बीसीसीआई के टैक्स मुक्त होने के मामले में, एक सामान्य नागरिक के भीतर कई सवाल उठते है जैसे कि क्या यह न्यायपूर्ण है? क्या ऐसे संगठनों को भी अपनी कमाई पर किसी प्रकार का टैक्स देना चाहिए या नहीं? यह तथ्य व सवाल स्पष्ट करते है कि हमारे देश में अमीर-गरीब के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। इस समस्या को समझने के लिए, हमें सामाजिक न्याय और विकास के मामले में सरकारी नीतियों को पुनः जाँचने की आवश्यकता है। यदि हम सबका समान न्याय चाहते हैं, तो बीसीसीआई जैसे संगठनों को भी उसी प्रकार के वित्तीय नियमों का पालन करना चाहिए जैसे कि सामान्य नागरिकों द्वारा किया जाता है।